BSF के 9 युवा कमांडरों ने अपनी नौकरी छोड़ दी। जानें गृह मंत्रालय ने उनके VRS को क्यों मंज़ूरी दी। पूरी खबर पढ़ना न भूलें!

9 BSF soldiers left the job,

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BSF: पिछले हफ्ते बीएसएफ के नौ अधिकारियों ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (वीआरएस) के लिए आवेदन किया, जिसमें सहायक कमांडेंट, डिप्टी कमांडेंट और कमांडेंट शामिल हैं। इन अधिकारियों में पंकज कुमार राणा, कमलेश मीणा, परमा नंद, विपिन कुमार और अन्य हैं। एक साथ इतनी संख्या में अधिकारियों का नौकरी छोड़ना चर्चा का विषय बन गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनकी वीआरएस फाइलें मंजूर कर दी हैं।

9 young BSF commanders quit their jobs. Know why the Home Ministry approved their VRS

पूर्व बीएसएफ अधिकारियों का मानना है कि इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। प्रमोशन में स्थिरता की कमी, वित्तीय लाभ की कमी और बेहतर करियर के विकल्प, ऐसे कारण हो सकते हैं जो अधिकारियों को वीआरएस लेने पर मजबूर करते हैं। कई वर्षों से कैडर अधिकारियों को समय पर पदोन्नति नहीं मिल रही है, जिससे उनकी चिंता बढ़ रही है।

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अधिकारी यह भी बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के बावजूद नये सेवा नियम नहीं बने हैं। इस वजह से केंद्रीय बलों में कई अधिकारी प्रमोशन और वित्तीय लाभ में भेदभाव का सामना कर रहे हैं। जूनियर अधिकारियों को भी लंबे समय तक उनकी पहली पदोन्नति नहीं मिल पा रही है। इसके अलावा बीएसएफ में कठिन ड्यूटी के कारण उनके मूल काम पर असर पड़ता है।

BSF कैडर अधिकारी कमांडेंट के पद तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं।

इस संदर्भ में, बीएसएफ के पूर्व अधिकारी दावा करते हैं कि अन्य केंद्रीय सुरक्षा बलों में भी पदोन्नति का यह अंतराल स्पष्ट है। बीस साल की सेवा के बाद भी आईपीएस अधिकारी उच्च पद पर पहुंच जाते हैं, जबकि कैडर अधिकारी कमांडेंट के पद तक भी नहीं पहुंच पा रहे हैं।

उनकी स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार को पदोन्नति की प्रक्रिया पर फिर से विचार करना चाहिए। ग्राउंड कमांडर और अन्य अधिकारियों को अपने हकों के लिए अदालत की शरण लेनी पड़ रही है।

पदोन्नति मांग करने वाले अधिकारियों उत्तर को मिलता है कि मामला अदालत में है

सूत्रों के अनुसार, पदोन्नति की मांग करने वाले अधिकारियों को स्पष्ट उत्तर मिलता है कि मामला अदालत में है और डीपीसी पर रोक लगी हुई है। यदि ऐसा ही चलता रहा, तो ये एक गंभीर समस्या बन जाएगी। कोर्ट में वरिष्ठता समेत कई मुद्दे चल रहे हैं। इस दौरान योग्य अधिकारियों को पदोन्नति मिलती है, लेकिन यह अदालत के निर्णय पर निर्भर करता है। विभाग का रवैया कोर्ट मामलों में अब तक कमजोर रहा है।

अधिकारियों को समय पर नोटिस नहीं दिया जाता। जब ग्राउंड कमांडर इस मामले को शीर्ष अधिकारियों के सामने उठाते हैं, तो उन्हें बताया जाता है कि कानून की टीम सक्रिय है। वरिष्ठता के मामले में सुप्रीम कोर्ट का स्टे है और इसे जल्दी सुलझाने की कोशिश हो रही है।

BSF कैडर रिव्यू कमेटी की बैठक 15 दिसंबर 2015 को हुई थी

केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत अर्धसैनिक बल, बीएसएफ और सीआरपीएफ की कैडर समीक्षा फाइल फिलहाल अटकी हुई है। पिछले वर्ष की अंतर्गत कैडर समीक्षा रिपोर्ट में इन दोनों बलों का नाम नहीं था। डीओपीटी के नियमों के अनुसार, हर 5 साल में कैडर समीक्षा जरूरी है। सीआरपीएफ की पिछली समीक्षा 2016 में हुई थी। बल के लिए कैडर रिव्यू कमेटी की बैठक 15 दिसंबर 2015 को हुई थी, जिसे 29 जून 2016 को मंजूरी मिली। इसी प्रकार, बीएसएफ की समीक्षा को 12 सितंबर 2016 को मंजूरी दी गई थी। डीओपीटी की रिपोर्ट में सीआरपीएफ और बीएसएफ का नाम नहीं है। अब इनकी समीक्षा की स्थिति क्या है, इसकी जानकारी नहीं है।

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कैडर अधिकारी नेतृत्व की सभी योग्यताएं रखते हैं

सीआरपीएफ के पूर्व एडीजी एचआर सिंह ने कहा कि कैडर अधिकारी नेतृत्व की सभी योग्यताएं रखते हैं और बल से जुड़े हर मुद्दे से परिचित हैं। इसलिए उन्हें शीर्ष पद देने चाहिए। सीआरपीएफ के पहले महानिदेशक वीजी कनेत्कर ने कहा था कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित नहीं होने चाहिए। 1955 के फोर्स एक्ट में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। 1970 में तत्कालीन होम सेक्रेट्री लल्लन प्रसाद सिंह और अन्य अधिकारियों ने भी कहा था कि केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस के लिए पद आरक्षित नहीं होने चाहिए। इन बलों में कैडर अधिकारियों को नेतृत्व का मौका मिलना चाहिए ताकि वे पदोन्नति के जरिए आगे बढ़ सकें।

केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस अफसर के लिए पदों का आरक्षण नहीं होना चाहिए

डीजी बीएसएफ केएफ रुस्तम ने कहा था कि केंद्रीय सुरक्षा बलों में आईपीएस अफसर के लिए पदों का आरक्षण नहीं होना चाहिए। 1955 के फोर्स एक्ट में इसकी कोई बात नहीं है। हमें अपने अधिकारियों को तैयार करना होगा, जो भविष्य में बल का नेतृत्व करेंगे। इसके बाद 1968 में सीआरपीएफ के पहले डीजी वीजी कनेत्कर ने कहा था कि उन्हें आईपीएस की जरूरत नहीं है।

BSF: दोनों बलों के डीजी की बात को सही माना और सुझाव दिया

तत्कालीन गृह सचिव एलपी सिंह ने भी इन दोनों बलों के डीजी की बात को सही माना और सुझाव दिया कि शुरू में 20 प्रतिशत अधिकारी सेना और आईपीएस से लिए जाएं, लेकिन बाद में कैडर को पद सौंपे जाएं और आईपीएस के लिए आरक्षण न किया जाए। 1970 में गृह मंत्रालय के डिप्टी डायरेक्टर जेसी पांडे ने लिखा कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में आईपीएस के लिए पद तय न करें, इससे कैडर अधिकारियों के अवसर प्रभावित होंगे। उस वक्त सीआरपीएफ के डीजी ने कहा कि केवल कार्यात्मक फ़ार्मूला लें, जो बाद में नई व्यवस्था के अनुसार बदल जाएगा।

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