WHO World News: जब से ट्रंप राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने तुरंत कई बड़े फैसले लिए। इनमें से एक था WHO से अलग होने का निर्णय। यह सवाल उठता है कि ट्रंप को WHO से क्यों समस्या है। उनकी कूटनीति का क्या मतलब है? चीन इस स्थिति का किस तरह से फायदा उठाने की कोशिश कर रहा है? भारत पर इसका क्या असर होगा? इस कहानी में इन सभी सवालों के उत्तर जानें।
डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकी राष्ट्रपति बनते ही सक्रियता दिखाना शुरू किया। उन्होंने चीन पर उच्च टैरिफ लगाने, कनाडा और मैक्सिको को अमेरिका में विलीन करने और अवैध प्रवासी नागरिकों को देश से बाहर करने की धमकी दी। उनके लगातार फैसले सभी को चौंका रहे हैं। इसी बीच, ट्रंप ने विश्व स्वास्थ्य संगठन, या WHO, के साथ सभी सहयोग बंद करने का आदेश दिया। उन्होंने WHO में काम करने वाले अमेरिकी कर्मचारियों को भी वापस बुलाने को कहा है। ट्रंप की WHO के प्रति नाराजगी का कारण क्या है?
क्या यह उनकी शपथ के बाद की नाराजगी है या पहले की? ट्रंप ने WHO की भूमिका पर सवाल क्यों उठाए हैं? इन सवालों के जवाब जानें। ट्रंप के कार्यालय ने सोमवार को अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के कर्मियों को WHO के साथ काम रोकने का निर्देश दिया है। कई संघीय स्वास्थ्य अधिकारियों और सीबीएस न्यूज ने इस बात की पुष्टि की है। एक ईमेल के माध्यम से सभी CDC कर्मचारियों को WHO से जुड़ी गतिविधियाँ बंद करने के लिए कहा गया।
अमेरिका WHO को मोटी रकम देता है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को अमेरिका से हर साल बड़ी मात्रा में धन मिलता है। यह धन न केवल अमेरिका के लोगों के लिए, बल्कि अफ्रीका और एशिया के गरीब और मध्यम वर्ग के देशों में स्वास्थ्य सेवाओं और सुरक्षा को बेहतर बनाने में भी मदद करता है। अमेरिका के योगदान से WHO को यह वित्तीय सहायता प्राप्त होती है।
अमेरिका, WHO के साथ मिलकर स्वास्थ्य से जुड़ी नई चुनौतियों पर काम करता है। हालाँकि, ट्रंप के बयान के बाद यह देखना होगा कि क्या WHO को आगे आर्थिक सहयोग मिलेगा या नहीं। यदि अमेरिका ने WHO को फंडिंग बंद कर दी, तो कई गरीब देशों के लिए समस्याएँ और बढ़ जाएँगी।
WHO पर ट्रंप ने चीन की तरफदारी करने का आरोप लगाया है
जब 2020 में कोरोना वायरस ने दुनिया में महामारी का रूप लिया, तब अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप थे। उन्होंने उस समय विश्व स्वास्थ्य संगठन पर कोरोना के फैलने के मामले में लापरवाही और जानकारी छुपाने का आरोप लगाया।
उन्होंने WHO पर चीन का समर्थन करने का भी आरोप लगाया। अब जब वे फिर से राष्ट्रपति बने, तो पहले ही दिन उन्होंने WHO से हटने के लिए एक आदेश पर हस्ताक्षर किए।
ट्रंप ने 2020 में राष्ट्रपति रहते हुए WHO को मिलने वाली फंडिंग अस्थाई रूप से रोक दी। उन्होंने बताया कि WHO को अपने कामकाज में सुधार की ज़रूरत है। इसके चार महीने बाद, अमेरिका ने औपचारिक रूप से WHO से अलग होने का निर्णय लिया। इसी साल कोरोना वायरस तेजी से पूरे विश्व में फैल रहा था।
अमेरिका के WHO से पीछे हटने से चीन के लिए बड़ा अवसर मिल सकता है
अमेरिका विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता देता है, जो कुल फंडिंग का 22.5 प्रतिशत है। चीन दूसरे स्थान पर है और WHO को 15 प्रतिशत की मदद करता है। अगर अमेरिका फंडिंग बंद कर दे, तो चीन इसे अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर सकता है। इससे वैश्विक कूटनीति पर भी असर पड़ सकता है।
US का WHO से हटना वर्ल्ड डिप्लोमेसी का हिस्सा?
- अमेरिका का विश्व स्वास्थ्य संगठन से अचानक हटने के एग्रेसिव फैसले ने चौंका दिया है। यह भी वर्ल्ड डिप्लोमेसी का हिस्सा है। क्योंकि स्वास्थ्य का भी वर्ल्ड इकोनॉमी से गहरा संबंध होता है। अमेरिका का डब्ल्यूएचओ से एकदम अलग हो जाना दुनिया के लिए नुकसानदेह होगा।
- अफ्रीकी देश Marburg वायरस की बीमारी से जूझ रहे हैं। तंजानिया में तो 9 लोगों की मौत भी हो गई। Mpox वायरस ने भी परेशान कर रखा है। ऐसी बीमारियों में गरीब अफ्रीकी देशों को डब्ल्यूएचओ से आर्थिक मदद मिलती है।
- ट्रंप कारोबारी प्रवृत्ति के व्यक्ति हैं। चीन का प्रभाव डब्ल्यूएचओ में बढ़ने के कारण अचानक स्वास्थ्य संगठन से अलग होकर वे ‘नेगोसिएशन’ का कदम भी उठा सकते हैं यानी इस मसले को बातचीत की टेबल पर लाना चाहते हैं।
भारत पर क्या पड़ेगा असर?
राशिद किदवई बताते हैं कि अमेरिका के डब्ल्यूएचओ से अलग हटने के फैसला भारत के लिए भी चिंता का विषय है। हमारे कई स्वास्थ्य कार्यक्रमों को डब्ल्यूएचओ से फंडिंग मिलती है। पोलियो जैसी बीमारी के लिए WHO से फंडिंग मिलती रही है। यही कारण रहा कि पोलियो को भारत ने मिटा दिया। हालांकि पाकिस्तान जैसे देशों में आज भी पोलियो के मरीज मिल रहे हैं।
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Author: UP Tak News
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